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Archive for January, 2007

हमारी सांसौं मैं आज तक वोह हीना की खुश्भू मॆहक रही है

लबोन पे नग्मे मचल रहे है

नज़र से मस्ती झलक रही है

वोह मेरे नज़्दीक आते आते हया से इक दिन सिमट गये थे

मेरे खयालों में आज तक

वोह बदन कि डाली लटक रही है

सदा जो दिल से निकल रही है वोह शेर-ओ-नघ्मों मै ढल रही है

के दिल के आंगन में जैसे

कोइ गज़ल कि धान्धर खनक रही है

तडप मेरे बेकरार दिल की कभी तो उन्पॆ असर करेगी

कभी तो वोह भी जलेन्गॆ इस्में

जो आग दिल में देहक रही है

~*~

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Question?

What do you do with an incorrigible romantic who doesn’t believe in letting go, when all sense tells him to let go?

~*~

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