हमारी सांसौं मैं आज तक वोह हीना की खुश्भू मॆहक रही है
लबोन पे नग्मे मचल रहे है
नज़र से मस्ती झलक रही है
वोह मेरे नज़्दीक आते आते हया से इक दिन सिमट गये थे
मेरे खयालों में आज तक
वोह बदन कि डाली लटक रही है
सदा जो दिल से निकल रही है वोह शेर-ओ-नघ्मों मै ढल रही है
के दिल के आंगन में जैसे
कोइ गज़ल कि धान्धर खनक रही है
तडप मेरे बेकरार दिल की कभी तो उन्पॆ असर करेगी
कभी तो वोह भी जलेन्गॆ इस्में
जो आग दिल में देहक रही है
~*~